बिहार के पटना निवासी अनिल कुमार की कहानी, समर्पण और शिक्षा की शक्ति का एक जीता-जागता उदाहरण है। युवावस्था में उनका सपना IPS अधिकारी बनने का था। उन्होंने UPSC की तैयारी भी की और दो-तीन प्रयास भी किए, लेकिन आर्थिक तंगी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण उनका यह सपना अधूरा रह गया।
सपना भले ही टूट गया, पर अनिल कुमार का हौसला नहीं टूटा। उन्होंने ठान लिया कि वह खुद तो अधिकारी नहीं बन पाए, पर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उन्हें ज़रूर अधिकारी बनाएंगे। इसी संकल्प के साथ, उन्होंने 1986 में पटना के बहादुरपुर में ‘कुमार बुक सेंटर’ नाम से एक छोटी-सी किताबों की दुकान खोली और संघर्ष शुरू कर दिया।
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बेटा-बहू DIG, बेटी SDM, घर में अधिकारियों की ‘गैलरी’!
अनिल कुमार ने सिर्फ किताबें नहीं बेचीं, बल्कि अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश और शिक्षा दी। इसका शानदार नतीजा आज पूरे देश के सामने है। उनके बड़े बेटे आशीष भारती बेगूसराय में DIG (पुलिस उप महानिरीक्षक) हैं और उनकी बहू भी दरभंगा में DIG के पद पर तैनात हैं। उनकी बेटी अनीशा भारती पटना में SDM के रूप में कार्यरत हैं। उनके दामाद भी एक बड़े अधिकारी हैं। 64 साल की उम्र में भी अनिल कुमार उसी लगन और ईमानदारी से दुकान चलाते हैं, और गर्व से बच्चों की तस्वीरें दिखाते हैं।

दिल्ली तक फैला किताबों का जुनून, संघर्ष से सफलता की कहानी
संघर्ष के शुरुआती दिनों में, अनिल कुमार ट्रेन से दिल्ली जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें लाते थे। बाद में, बच्चों को उच्च शिक्षा और बेहतर माहौल देने के लिए वह परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गए और वहाँ भी एक दुकान खोल ली, जो जल्दी ही चर्चित हो गई। कोविड काल में जब अनिल कुमार बीमार पड़े, तो उनके छोटे बेटे ने अपनी पढ़ाई छोड़कर दुकान की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली और व्यवसाय को मजबूत बनाए रखा। आज छोटा बेटा दिल्ली वाली दुकान संभालता है।

किताबों से अधिकारी तक, अब निःशुल्क कोचिंग से युवाओं को दे रहे प्रेरणा
अनिल कुमार अब वापस पटना आ चुके हैं और बोरिंग रोड में फिर से कुमार बुक सेंटर चला रहे हैं। लेकिन उनका योगदान यहीं खत्म नहीं होता। उनके अधिकारी बच्चे भी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए किताबें लिखते हैं, जो उनके पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशित होती हैं।
सबसे प्रेरणादायक पहल यह है कि अनिल कुमार ने आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं के लिए ‘द ऑफिसर्स क्लासेज’ नाम से एक फ्री ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शुरू किया है। इस प्लेटफॉर्म पर उनके बेटे और बेटी भी मेंटर के रूप में छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं। किताबों से जुड़ा यह पूरा परिवार आज अनगिनत युवाओं के लिए एक बड़ी मिसाल बन चुका है।


