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September 26, 2025

ज्वाला देवी मंदिर: हिमांचल का चमत्कारी शक्ति पीठ जहां सदियों से जल रही है अखंड अग्नि

The CSR Journal Magazine
हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर भारत के 51 शक्ति पीठों में से एक है। मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां देवी सती की जीभ गिरी थी। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने अपने पिता के यज्ञ में अपमान सहन नहीं किया और अग्नि में समा गईं। उनके पति, भगवान शिव, दुःख में पूरे भारत में उनके शव को लेकर घूमने लगे। उनके शोक और तांडव के कारण पृथ्वी पर भयंकर संकट उत्पन्न हुआ।इस संकट को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी शक्ति से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में बांट दिया और प्रत्येक टुकड़ा पृथ्वी पर गिर गया।
ज्वाला देवी के स्थान पर सती की जीभ गिरी, और तभी से यह जगह शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुई। कहा जाता है कि इसी कारण यहां की अखंड ज्योति बिना तेल, घी या बाती के स्वयं प्रज्वलित रहती है। यह ज्योति आज भी भक्तों के लिए विश्वास और आस्था का प्रतीक है।

मंदिर का इतिहास और निर्माण

माना जाता है कि इस मंदिर का मूल निर्माण राजा भूमि चंद ने कराया था। बाद में पांडवों द्वारा इसका पुनर्निर्माण किया गया। मंदिर की वर्तमान संरचना कई बार मरम्मत और नवीनीकरण के बाद बनी है। मुगल सम्राट अकबर ने भी मंदिर का दौरा किया और आग बुझाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। इसके बाद उन्होंने देवी को स्वर्ण छत्र अर्पित किया।

अखंड ज्योति का रहस्य

मंदिर में नौ प्राकृतिक ज्वालाऐं चट्टानों से निकलती हैं। वैज्ञानिक भी इनके स्रोत का पता नहीं लगा पाए हैं। ये ज्वालाऐं देवी की दिव्य उपस्थिति और शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं। भक्त मानते हैं कि यह अग्नि देवी का असली चमत्कार है।

मंदिर की संरचना

मंदिर में चारों कोनों पर छोटे गुंबद और बीच में बड़ा गुंबद है। गर्भगृह के केंद्र में पत्थर की चट्टान है, जिससे ज्वालाऐं निकलती हैं। चारों ओर प्राचीन किलेनुमा दीवार मंदिर की सुरक्षा करती है। मंदिर में मुख्य रूप से नौ ज्योतियां जलती हैं, जिन्हें विभिन्न देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता है।
महाकाली
महामाया अन्नपूर्णा
चंडी माता
हिंगलाज भवानी

नवरात्रि में विशेष महत्व

नवरात्रि में मंदिर विशेष रूप से सजता है और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस दौरान मंदिर में विशेष अनुष्ठान और आरतियां आयोजित की जाती हैं। विशेष रूप से अष्टमी के दिन मंदिर में विशेष पूजा होती है। मकर संक्रांति के दिन देवी के पिंडी रूप पर घी चढ़ाने की परंपरा है। इन ज्योतियों की पूजा से भक्तों की मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं और आत्मिक शांति मिलती है।
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