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November 15, 2025

Himachal Pradesh का पत्थर मेला: 300 साल पुरानी परंपरा, खून से होती है देवी भद्रकाली की पूजा

The CSR Journal Magazine
शिमला से करीब 26–30 किलोमीटर दूर धामी क्षेत्र के हलोग गांव में हर साल दिवाली के अगले दिन अनोखे ‘पत्थर मेले’ का आयोजन किया जाता है। यह मेला सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है और स्थानीय लोगों के अनुसार यह देवी मां भद्रकाली की पूजा का प्रतीक भी है। मेला विशेष रूप से दो गांवों, हलोग और जमोग के युवाओं के बीच पत्थरबाजी के लिए जाना जाता है।

मेला कैसे शुरू होता है?

परंपरा के अनुसार मेला नरसिंह देवता मंदिर के पुजारी और ढोल-नगाड़ों के साथ काली देवी मंदिर पहुंचने के बाद शुरू होता है। राजपरिवार और ग्रामीण जुलूस के रूप में मुख्य स्थल ‘शारड़ा’ तक पहुंचते हैं, जहां से पत्थरबाजी का सिलसिला शुरू होता है।

पत्थरबाजी का अनोखा नियम

इस मेले की सबसे खास बात यह है कि पत्थरबाजी तब तक जारी रहती है जब तक किसी व्यक्ति के शरीर से खून नहीं निकलता। जैसे ही कोई घायल होता है और खून निकलता है, उसे देवी मां के माथे पर तिलक के रूप में लगाया जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह खून शुभ संकेत माना जाता है और इसे देवी को प्रसन्न करने का प्रतीक माना जाता है।

परंपरा का ऐतिहासिक महत्व

स्थानीय लोगों के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत लगभग 300 साल पहले हुई थी। पहले इस क्षेत्र में क्षेत्र की खुशहाली और सुरक्षा के लिए नरबलि की जाती थी। बाद में एक रानी ने इस प्रथा को बंद कर दिया और खून से तिलक करने की परंपरा शुरू की। तभी से यह ‘पत्थर मेला’ हर साल दिवाली के अगले दिन आयोजित किया जाता है। यह केवल एक मेला नहीं बल्कि साहस और आस्था का प्रतीक भी माना जाता है।

प्रशासन और मानवाधिकार संगठनों की चेतावनी

हालांकि प्रशासन और मानवाधिकार संगठन इस परंपरा को रोकने की कोशिश करते रहे हैं, क्योंकि इसमें चोट लगने का जोखिम होता है, ग्रामीण अपनी मान्यताओं को बनाए रखते हैं। उनका कहना है कि यह मेला देवी मां के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है और इसे बंद करना उनके लिए असंभव है।

इस साल की पत्थरबाजी और रिटायर्ड पुलिस अधिकारी

इस साल पत्थरबाजी लगभग 26 मिनट तक चली। इस दौरान 60 वर्षीय सुभाष, जो हाल ही में पुलिस विभाग से एसएचओ पद से रिटायर हुए हैं, सबसे पहले घायल हुए। उनके शरीर से खून बहने पर उसे देवी मां के माथे पर तिलक के रूप में लगाया गया। उन्होंने इसे गर्व और आस्था का अनुभव बताया। स्थानीय लोग मानते हैं कि इस मेला में कभी गंभीर चोट नहीं आई, केवल उतना ही खून निकलता है जितना तिलक के लिए आवश्यक होता है।

मेला समाप्ति का संकेत

पत्थरबाजी की समाप्ति का नियम स्पष्ट है जब किसी के शरीर से खून निकलता है, तभी मेला खत्म होता है। इसे देवी को प्रसन्न करने और क्षेत्र में खुशहाली बनाए रखने के रूप में देखा जाता है। इस तरह यह मेला न केवल उत्सव का अवसर है, बल्कि साहस, आस्था और स्थानीय परंपरा का जीवंत उदाहरण भी है।
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