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November 19, 2025

Himachal: 5,000 साल पुराना राउलाने मेला, जहां परियों, मुखौटे और प्राचीन नृत्यों का रहस्य इतिहास भी नहीं बता सका

The CSR Journal Magazine
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले का कल्पा गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और अनोखी जनजातीय संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां के रीति-रिवाज और पर्व हिमाचल की पारंपरिक जीवनशैली को परिभाषित करते हैं। कल्पा में मनाया जाने वाला राउलाने त्यौहार भी इन्हीं प्राचीन परंपराओं में शामिल है, जिसे स्थानीय लोग लगभग 5,000 साल पुराना मानते हैं। इसे देखकर लगता है मानो समय खुद रुक गया हो, और यह परंपरा सदियों से बिना किसी बदलाव के जीवित है।

त्यौहार का रहस्य और महत्व

राउलाने का वास्तविक उत्पत्ति स्थान या समय कोई नहीं जानता। इतिहासकार भी इसे दर्ज करने में असमर्थ रहते हैं। माना जाता है कि यह पर्व सावनी (स्थानीय परियों) को खुश करने और उनकी शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए मनाया जाता है। फाल्गुन मास में देवता स्वर्गलोक में प्रवास पर रहते हैं, और इस दौरान सावनी की नकारात्मक शक्तियां बढ़ जाती हैं। त्यौहार के आखिरी दिन इन्हें उनके स्थान पर भेजा जाता है।
स्थानीय लोग मानते हैं कि यह पूजा करने से क्षेत्र में सुख, शांति और अच्छे कृषि परिणाम सुनिश्चित होते हैं। त्यौहार की शुरुआत सुबह कुल देवता की पूजा से होती है, जिसमें पुरुष महिलाओं के पारंपरिक वेशभूषा (दोढू) पहनते हैं और मंदिर में विधिवत पूजा करते हैं।

राउलाने और राउला की अनोखी परंपरा

राउलाने का केंद्र बिंदु है राउलाने (महिला) और राउला (पुरुष) की भूमिका। दिलचस्प बात यह है कि दोनों मुख्य रूप से पुरुष ही निभाते हैं। राउलाने elaborate फूलों का मुकुट और पारंपरिक आभूषण पहनती हैं, जबकि राउला अपने चेहरे को लाल कपड़े से ढक लेता है। यह मुखावरण उन्हें सामान्य इंसानों से अलग बनाता है और उन्हें मानव और आध्यात्मिक दुनिया के बीच पुल की तरह प्रस्तुत करता है। त्यौहार के दौरान गांव की पूरी आबादी, जन्मपुंडुलु नामक भयंकर मुखौटे पहने पुरुषों के नेतृत्व में, मंदिर की ओर जाती है। यह यात्रा सिर्फ शोभायात्रा नहीं, बल्कि प्राचीन रीति और विश्वास की जीवंत झलक होती है।

नाच और सांस्कृतिक उत्सव

राउलाने और राउला मंदिर प्रांगण में धीरे-धीरे और परंपरागत नृत्य करते हैं। यह नृत्य सावनी को विदा करने और क्षेत्र में समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रतीक है। इस दौरान ग्रामीण, विशेषकर महिलाएं और पुरुष, अपने जनजातीय व पारंपरिक परिधान में सज-धज कर आते हैं। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में किन्नौर के सभी तहसील के लोग हिस्सा लेते हैं।
त्यौहार के दौरान खान-पान भी विशेष होता है। प्रत्येक घर में बाड़ी, ओगला, फाफरे, मोमो, हलवा-पूरी और नमकीन चाय बनाई जाती है। इसके बाद किन्नौरी नाटी यानी कायंग का दौर चलता है और ग्रामीण आपस में हंसी-मजाक और लोकनृत्य के माध्यम से इस पर्व का आनंद उठाते हैं।

राउलाने: समय से परे परंपरा

राउलाने केवल एक त्यौहार नहीं है, बल्कि कला, भक्ति और समुदाय का अद्भुत मेल है। यह परंपरा बदलते समय, आधुनिकता और तकनीक के बीच भी वैसी ही जीवित है, जैसी सदियों पहले थी। गांववाले इसे न केवल मनाते हैं बल्कि इसे अपने संस्कार और पहचान का प्रतीक मानते हैं। यह त्यौहार इस बात का प्रमाण है कि कुछ परंपराएं समय के साथ मिटती नहीं, बल्कि गहरी जड़ों के साथ जीवित रहती हैं। राउलाने का जादू यही है कि यह इतिहास की किताबों में नहीं, बल्कि पहाड़ों और लोगों की आत्मा में बसा है। यह पर्व 5,000 साल पुराना रहस्य और विश्वास आज भी यथावत् जीवित है।
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