राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर आज पूरा देश बापू को नमन कर रहा है, आधुनिक विश्व को अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले, महान समाज सुधारक, अंत्योदय से समाजोदय व स्वदेशी से स्वावलंबन दर्शन के प्रणेता बापू से संपूर्ण विश्व आज उससे प्रेरणा प्राप्त कर रहा है। महात्मा गांधी के विचारों, उनके सिद्धांतों को लोग अपने जीवन में उतारने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। बापू के बताए हुए अहिंसा के मार्गों पर हर कोई चलने का प्रयास कर रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि आज के अत्याधुनिक भारत के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी यानि सीएसआर (CSR) कानून की नींव महात्मा गांधी ने भी रखी थी।
सीएसआर और ट्रस्टीशिप पर महात्मा गांधी के विचार
महात्मा गांधी कहते थे कि “मान लीजिए कि मैं बहुत अधिक धनवान हूं, यह धन-दौलत या तो विरासत या व्यापार और उद्योग के माध्यम से मिला हो। लेकिन मुझे पता है कि ये धन दौलत सिर्फ मेरा नहीं है, जो मेरा है वह सम्मानजनक आजीविका है, इससे बेहतर कोई और नहीं हो सकता। मेरी संपत्ति का बाकी हिस्सा समुदाय का है और इसका इस्तेमाल समुदाय के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए।” और शायद यही बापू की सोच की बदौलत आज सीएसआर कानून भारतीय समाज के सांस्कृतिक, सामाजिक और चौमुखी विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
गांधीजी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांतों पर बना सीएसआर कानून
भारत में साल 2014 में सीएसआर (Corporate Social Responsibility) कानून अनिवार्य कर दिया गया था। हालांकि, कानून को संसद में पेश किए जाने से बहुत पहले से ही CSR भारत में प्रचलित और आंतरिक रहा है। CSR की जड़ें हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा ‘ट्रस्टीशिप’ के आदर्श में निहित रहा हैं। महात्मा गांधी द्वारा प्रदान की गई ट्रस्टीशिप की अवधारणा ने उस समय के भारतीय व्यापार जगत के नेताओं के डीएनए में सीएसआर अंकित कर दिया था । इस अवधारणा के अनुसार, पूंजीपतियों को अपनी संपत्ति के ट्रस्टी (मालिक नहीं) के रूप में कार्य करना चाहिए और सामाजिक रूप से जिम्मेदार तरीके से खुद को संचालित करना चाहिए।
‘सेवा ही धर्म है’ यह भारतीय जीवन पद्धति का हिस्सा है। व्यापारियों की समाज के प्रति जिम्मेदारियों का महात्मा गांधी ने भी ज़ोरदार समर्थन किया। भारत की आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण में गांधी के विचारों का बड़ा योगदान है। गांधी जी की ‘ट्रस्टशिप’ का दर्शन उस समय के अमीर लोगों को समाज और कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए अपने संसाधन दान में देने का प्रेरक माध्यम बना। देश के कॉर्पोरेट आज गांधीजी की इस सोच को आगे ले जाने में काफी सफल हुए है।
सीएसआर और महात्मा गांधी की ट्रस्टीशिप
जैसा कि हम सब जानते हैं ट्रस्टीशिप ने सीएसआर की नींव रखी। भारत की संसद में कानून पेश होने से बहुत पहले, टाटा और विप्रो जैसे व्यापारिक घराने सीएसआर गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थे। इन व्यावसायिक घरानों के नेताओं ने महात्मा गांधी के ट्रस्टीशिप को उनके परोपकारी कार्यों का श्रेय दिया है। सीएसआर कॉर्पोरेट सेक्टर को समाज से जोड़ता है। यह न केवल व्यवसाय को नैतिक रूप से संचालित करने का आग्रह करता है, बल्कि समाज के विकास में सक्रिय भागीदारी भी चाहता है। सीएसआर भी यही करता है।
समाज के हर व्यक्ति को समान अवसर देने और दीये से दीये जलाने का प्रोत्साहन अब देश के कॉर्पोरेट्स में भी आ गया है। वे कार्पोरेट सोशल रिसपांसिबिलिटी के जरिए देश में सेवा का एक नया अलख जगा रहे हैं। कंपनियों की समाज के प्रति इस ज़िम्मेदारी पर पिछले 3 वर्ष में सम्मिलित रूप से लगभग 50 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। जिसे हर साल आगे बढ़ता ही जाना है। महात्मा गांधी की जयंती पर कॉर्पोरेट्स सीएसआर पहल से लाभान्वित हुए लाखों लोगों की तरफ से भी बापू के प्रति यह सच्ची श्रद्धांजलि है।