नवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसमें नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। हर दिन एक देवी का महत्व और उपासना-विधान अलग होता है। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है, जिन्हें देवी शक्ति का प्रथम रूप माना जाता है।
मां शैलपुत्री का परिचय
‘शैल’ का अर्थ है पर्वत और ‘पुत्री’ का अर्थ है बेटी। शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ, इसलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। पिछले जन्म में ये मां सती थीं, जो भगवान शिव की पत्नी थीं। उनके पिता राजा दक्ष ने शिव जी का अपमान किया था, जिसके बाद सती ने अपने आप को अग्नि में जला दिया। अगले जन्म में वे हिमालय राज के घर शैलपुत्री के रूप में जन्मीं। जब वे बड़ी हुईं, तो फिर से शिव जी से विवाह किया। शैलपुत्री रूप में वे नवदुर्गा के पहले रूप में पूजी जाती हैं। मां शैलपुत्री का रूप शक्ति, साहस और स्थिरता का प्रतीक है। इन्हें वृषारूढ़ा, उमा और हेमवती नामों से भी जाना जाता है।
स्वरूप और प्रतीक
मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल रहता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित रहता है। यह स्वरूप शांति, साहस और भक्ति का प्रतीक है।
पूजन-विधि
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सुबह स्नान करके शुद्ध हो जाओ।
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कलश स्थापना करो।
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मां शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र पर जल, गंगाजल छिड़को।
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धूप, दीप, फूल, अक्षत, रोली‑टिका अर्पित करो।
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भोग में सफेद और शुद्ध चीजें (दूध, खीर, सफेद फूल) अर्पित करे।
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अखंड ज्योत जलाना शुभ है।
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संभव हो तो सुबह के मुहूर्त में आरती करो।