दीपावली 2025 के पांच दिवसीय पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है, जो धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन सोना-चांदी, बर्तन, लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों के साथ खास तौर पर धनिया और झाड़ू खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे पूरे साल माता लक्ष्मी और कुबेर जी की कृपा बनी रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं, इन दोनों वस्तुओं के तार सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और वैज्ञानिक लाभों से भी जुड़े हैं?
सेहत का खजाना है ‘धनिया’: सिर्फ मसाला नहीं, पाचन का डॉक्टर!
धनिये को धार्मिक रूप से ‘धन’ का प्रतीक माना जाता है। वैज्ञानिक रूप से इसमें फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट्स और एसेंशियल ऑयल्स भरपूर होते हैं। यह पाचन को सुधारकर गैस, अपच और कब्ज से राहत देता है। दिवाली के दौरान हेवी खाने के बाद, धनिया का सेवन पेट की सफाई कर विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।
एंटी-इंफ्लेमेटरी और इम्यून बूस्टर: धनिया में मौजूद लिनालूल नामक यौगिक सूजन कम करता है और बैक्टीरिया से लड़ता है। यह ठंड के मौसम में इम्यूनिटी बढ़ाकर सर्दी-जुकाम से बचाव करता है। पूजा के बाद धनिया को तिजोरी में रखने या मिट्टी में बोने की परंपरा असल में इसके पोषण को बढ़ाने का एक प्राचीन तरीका है।
‘झाड़ू’ से आती है समृद्धि: सिर्फ सफाई नहीं, मानसिक शांति भी!
झाड़ू को मां लक्ष्मी का रूप और स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि नई झाड़ू खरीदने से दरिद्रता दूर होती है और सकारात्मकता आती है।
सांस संबंधी समस्याओं से बचाव: वैज्ञानिक रूप से झाड़ू धूल, कचरा और एलर्जेंस हटाकर हवा की गुणवत्ता सुधारती है। यह हवा में बैक्टीरिया और वायरस को फैलने से रोकती है, जिससे सांस संबंधी समस्याओं का खतरा कम होता है।
‘फ्रेश स्टार्ट’ से तनाव कम:
पुरानी झाड़ू से सफाई तनाव बढ़ा सकती है। नई झाड़ू से सफाई एक प्रकार की ‘रिचुअल क्लीनिंग’ है, जिसे मनोविज्ञान में ‘फ्रेश स्टार्ट’ माना जाता है। यह एंडोर्फिन्स रिलीज कर तनाव कम करती है और मानसिक स्वास्थ्य सुधारती है।
पर्यावरण-अनुकूल चुनाव:
धनतेरस पर सीक या फूल वाली झाड़ू को शुभ माना जाता है। विज्ञान की नजर से पारंपरिक घास या नारियल की झाड़ू पर्यावरण-अनुकूल होती हैं, जो प्लास्टिक की तुलना में कम कचरा पैदा करती हैं। इस तरह झाड़ू खरीदने की परंपरा सफाई को व्यवस्थित और पर्यावरण-हितैषी बनाती है।
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