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October 31, 2025

Dev Uthani Ekadashi 2025: श्रीहरि के जागने से शुरू होंगे शुभ काम, पर इन 5 गलतियों से रहें सावधान

The CSR Journal Magazine
देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शुभ पर्व है। इसे देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आता है और इस वर्ष 1 नवंबर 2025, शनिवार को मनाया जाएगा। यह वही दिन है जब भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। इन चार महीनों को “चातुर्मास” कहा जाता है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) तक चलता है।

देवउठनी एकादशी पूजा मुहूर्त

  • एकादशी तिथि आरंभ: 1 नवंबर, सुबह 9:11 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 2 नवंबर, सुबह 7:31 बजे
  • व्रत पारण (फास्ट तोड़ने का समय): 2 नवंबर, 7:31 बजे के बाद
  • श्रेष्ठ पूजा मुहूर्त: सुबह 8:00 बजे से 10:30 बजे तक
  • अभिजीत मुहूर्त: शाम 5:36 से 6:02 बजे तक

पूजा विधि (Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi)

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। घर के द्वार पर गेरू और चूने से अल्पना (आलपन) बनाएं। गन्ने का मंडप बनाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम की स्थापना करें। गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करेंI पूजा में तुलसी पत्र, पुष्प, अक्षत, रुई, गुड़, रोली और दीपक का प्रयोग करें।भगवान को जगाने के लिए भजन गाएं और मंत्र बोलें “उठो देव, बैठो देव, तुम्हारे उठने से सब शुभ कार्य हों।

भगवान विष्णु क्यों क्यों जाते हैं योगनिद्रा में?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार देवता और असुरों के बीच निरंतर युद्ध होने लगे, जिससे ब्रह्मांड में असंतुलन फैल गया। तब भगवान विष्णु ने कहा कि वे कुछ समय के लिए योगनिद्रा (गहरी ध्यानावस्था) में जाएंगे ताकि सृष्टि की शक्तियां संतुलित रह सकें। उनका यह विश्राम काल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होता है  जब वे क्षीरसागर में शेषनाग पर लेटकर निद्रा में जाते हैं। इस अवधि में सभी देवता विश्राम करते हैं, और कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता। जब वे देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं, तो यह माना जाता है कि सृष्टि पुनः सक्रिय हो जाती है, और शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।

मंदिरों में गूंजेंगे जयकारे  “उठो देव, जागो देव”

देवउठनी एकादशी को शुभारंभ और जागरण का पर्व कहा जाता है। इस दिन से विवाह, उपनयन, मुंडन, गृह प्रवेश, भूमि पूजन जैसे सभी शुभ कार्यों का आरंभ होता हैI यह दिन सकारात्मक ऊर्जा और नई शुरुआत का प्रतीक है। भगवान विष्णु के जागरण के साथ संपूर्ण ब्रह्मांड में धार्मिक चेतना का प्रवाह माना जाता है।
1 नवंबर की सुबह से ही मंदिरों में घंटा, शंख, मृदंग और भजन-कीर्तन की गूंज होगी। भक्तजन भगवान विष्णु को जगाने के लिए जयकारे लगाते हैं “उठो देव, जागो देव, तुम्हारे उठने से सब शुभ कार्य हों। यह क्षण भक्ति और आनंद से भरा होता है, क्योंकि यही पल शुभ कार्यों की नई शुरुआत का संकेत देता है।

तुलसी विवाह की परंपरा

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु (शालिग्राम) और माता तुलसी का विवाह करने की परंपरा है। इसे तुलसी विवाह कहा जाता है। यह विवाह पवित्रता, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। विवाह के बाद भक्त प्रसाद वितरण करते हैं और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।

इन गलतियों से बचें

इस दिन तामसिक भोजन, प्याज-लहसुन और मदिरा का सेवन न करें। तुलसी के पत्ते न तोड़ें, क्योंकि यह विवाह दिवस माना जाता है। देर तक सोना वर्जित है ब्रह्म, मुहूर्त में उठकर भगवान का स्मरण करें। पूजन के बाद दान और सेवा अवश्य करें। नकारात्मक बोल या झगड़ा न करें, इस दिन शांत मन और श्रद्धा से पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है।

देशभर में भक्ति का उत्सव

देवउठनी एकादशी पर वृंदावन, वाराणसी, अयोध्या, उज्जैन और नेपाल में भव्य कार्यक्रम होते हैं। मंदिरों में दीपमालाएं, सामूहिक कीर्तन, और तुलसी विवाह के आयोजन से पूरा वातावरण आध्यात्मिक बन जाता है।“जब श्रीहरि जागते हैं, तो जीवन में नई ऊर्जा और प्रकाश का संचार होता है।
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