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October 28, 2025

क्यों कहा जाता है छठ व्रत सबसे कठिन, आखिर किसके लिए रखा जाता है ये ? आइए जानते हैं

The CSR Journal Magazine
28 अक्टूबर 2025, मंगलवार  आज छठ महापर्व का चौथा और अंतिम दिन है। मंगलवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर यह चार दिवसीय पवित्र पर्व संपन्न हुआ। 36 घंटे के निर्जला उपवास के बाद व्रती महिलाओं ने भगवान सूर्य और छठी मइया की पूजा-अर्चना की और अपने परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की लंबी आयु तथा जीवन में नई ऊर्जा की कामना की।
सुबह की पहली किरण के साथ ही देशभर के घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। महिलाएं पारंपरिक साड़ी में सजी, सिर पर टोकरी लिए घाटों की ओर बढ़ीं, जिनमें ठेकुआ, गन्ना, नारियल, नींबू, और मौसमी फल रखे गए थे। चारों ओर भक्ति संगीत और लोकगीतों की गूंज ने माहौल को और भी पवित्र बना दिया।

घाटों पर गूंजे छठी मइया के जयकारे

आज तड़के से ही श्रद्धालु घाटों पर जुट गए। जैसे ही उगते सूर्य की पहली किरण आसमान में फैली, जल में खड़ी व्रती महिलाओं ने दूध और गंगाजल से अर्घ्य अर्पित किया। पूरा वातावरण “छठी मइया के जयकारों” से गूंज उठा।सुरक्षा और व्यवस्था के लिए प्रशासन की ओर से विशेष इंतजाम किए गए थे। सभी घाटों पर साफ-सफाई, रोशनी और एनडीआरएफ की टीमें मौजूद रहीं ताकि श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो।

छठ पर्व की शुरुआत और नाम के पीछे की कथा

कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी को संतान नहीं हो रही थी। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ किया, लेकिन जो संतान जन्मी, वह मृत थी। दुखी राजा-रानी प्राण त्यागने ही वाले थे कि तभी षष्ठी देवी प्रकट हुईं।उन्होंने कहा  “मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री और बालकों की रक्षक हूं। यदि तुम मेरी विधि से पूजा करोगे तो तुम्हें स्वस्थ संतान मिलेगी।राजा-रानी ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को देवी की पूजा की और शीघ्र ही उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। तभी से यह पर्व “छठ पूजा” कहलाया।
‘छठ’ शब्द संस्कृत के षष्ठी से बना है, जिसका अर्थ होता है “छठा दिन।” दिवाली के छठे दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्यदेव और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है। छठी मइया को संतान और परिवार की रक्षक देवी माना जाता है, जिनकी पूजा से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

उदयागमी अर्घ्य का महत्व

छठ पर्व का सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है उदयागमी अर्घ्य, यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना। यह क्षण जीवन में प्रकाश, सकारात्मकता और नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।मान्यता है कि सूर्यदेव को अर्घ्य देने से आत्मा शुद्ध होती है, शरीर में नई ऊर्जा आती है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है। इस वर्ष 2025 में सूर्योदय का समय सुबह लगभग 6:30 बजे रहा।

क्यों कहा जाता है छठ व्रत सबसे कठिन?

छठ पूजा को सबसे कठिन व्रत इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें व्रती महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखती हैं। वे जमीन पर सोती हैं, घर और पूजा स्थान की पूर्ण शुद्धता बनाए रखती हैं और पूरे व्रतकाल में संयम और भक्ति का पालन करती हैं।यह व्रत न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक तपस्या भी है,जहां हर क्षण विश्वास, समर्पण और आत्मबल की परीक्षा होती है।

किसके लिए रखा जाता है ये व्रत: पति या बच्चों के लिए?

अक्सर लोग छठ पूजा को करवा चौथ की तरह पति की लंबी उम्र का व्रत समझ लेते हैं, लेकिन सच्चाई इससे अलग है।छठ व्रत पति के लिए नहीं, बल्कि संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और परिवार की समृद्धि के लिए रखा जाता है।छठी मइया को “संतान की रक्षक देवी” माना जाता है। लोकमान्यता है कि जो महिलाएं पूर्ण निष्ठा से यह व्रत करती हैं, उनके बच्चों को देवी का आशीर्वाद मिलता है और परिवार में खुशियां बनी रहती हैं।
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