भारत में छठ पूजा को आस्था का महापर्व कहा जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्रतीक है। उत्तर भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। छठ पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह प्रकृति, शुद्धता और आत्मसंयम का भी अद्भुत उदाहरण है।
छठ पूजा की शुरुआत और इतिहास
छठ पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है। माना जाता है कि इस व्रत की शुरुआत त्रेतायुग में हुई थी, जब माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद सूर्य देव की उपासना की थी। एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में कुंती पुत्र कर्ण, जो सूर्य पुत्र थे, प्रतिदिन सूर्यदेव की आराधना करते थे, यही छठ व्रत की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। यह पूजा सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद से आरोग्यता व समृद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती है।
छठ पूजा में भूलकर भी न करें ये गलतियां
छठ पूजा में पवित्रता और अनुशासन का विशेष महत्व होता है। इस व्रत के दौरान ज़रा सी लापरवाही भी पूजा की शुद्धता को भंग कर सकती है। इसलिए भूलकर भी पूजा सामग्री को गंदे हाथों से न छुएं, हमेशा नहाकर ही प्रसाद और अर्घ्य की तैयारी करें। खरना या अर्घ्य के प्रसाद में साधारण नमक, प्याज या लहसुन का प्रयोग न करें, केवल सेंधा नमक और शुद्ध देसी घी का ही उपयोग करें। प्रसाद बनाने की जगह पर जूते-चप्पल लेकर न जाएं और वहां शोर-शराबा न करें।
मिट्टी के चूल्हे पर ही खीर और रोटी बनाएं, गैस या इलेक्ट्रिक स्टोव का प्रयोग करने से पूजा की पवित्रता कम होती है। सूर्य अर्घ्य देते समय जल को अपवित्र न करें और हँसी-मजाक या बातचीत से बचें। सबसे महत्वपूर्ण, व्रत के दौरान मन में नकारात्मक विचार या क्रोध न आने दें, क्योंकि छठ पूजा सिर्फ बाहरी सफाई नहीं बल्कि मन और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है।
चार दिवसीय अनुष्ठान: चरण-दर-चरण
छठ पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है, नहाय-खाय, खरना (लोहंडा), संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य। हर दिन का अपना विशेष धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व होता है।
पहला दिन – नहाय-खाय (25 अक्टूबर 2025)
इस दिन व्रती शुद्ध जल से स्नान कर पवित्रता के साथ व्रत की शुरुआत करते हैं। व्रती अरवा चावल, चना दाल, लौकी की सब्जी और आंवले की चटनी का सेवन करते हैं। इसे शुद्ध भोजन माना जाता है। नहाय-खाय व्रतियों की आत्मिक शुद्धि का पहला चरण होता है।
दूसरा दिन – खरना या लोहंडा (26 अक्टूबर 2025)
खरना का अर्थ होता है शुद्धता और आत्मसंयम। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ियों से गुड़ की खीर और गेहूं की रोटी बनाते हैं। यह प्रसाद छठी मैया को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार के साथ ग्रहण किया जाता है।
इसी दिन से व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ होता है, जो अत्यंत कठिन माना जाता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर 2025)
इस दिन व्रती और श्रद्धालु शाम के समय अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। नदी, तालाब या घाटों पर पूजा का भव्य दृश्य देखने योग्य होता है। व्रती पूजा के दौरान सूर्य देव से परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता की कामना करते हैं। पूजा के समय लोकगीतों और छठी मैया के भजनों की गूंज वातावरण को भक्तिमय बना देती है।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य और पारण (28 अक्टूबर 2025)
अंतिम दिन सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती अपने व्रत का समापन करते हैं। इसे पारण कहा जाता है। व्रतियों के अनुसार, यह अर्घ्य जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक होता है। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर व्रत पूर्ण करती हैं।
खरना का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
खरना को छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण चरण माना जाता है। यह न केवल आत्मसंयम का अभ्यास है बल्कि शरीर की शुद्धि का भी माध्यम है। गुड़ की खीर और ईख के रस में पाए जाने वाले पोषक तत्व शरीर को ऊर्जा देते हैं और उपवास की तैयारी कराते हैं। मान्यता है कि खरना के प्रसाद से त्वचा रोग, आंखों की पीड़ा और शरीर के दाग-धब्बे दूर होते हैं।
पूजा की सामग्रियां और लोक परंपराएं
छठ पूजा में उपयोग की जाने वाली मुख्य सामग्रियों में बांस की टोकरी, सुप, ठेकुआ, गन्ना, नारियल, सिंदूर, धूप, पान, हल्दी, अदरक, दीपक, घी, गेहूं और गंगाजल शामिल हैं। पूजा के दौरान महिलाएं लोकगीत गाती हैं जैसे,
“केलवा के पात पर उगले सूरज देव…”
इन गीतों के माध्यम से सूर्य देव की महिमा और छठी मैया की कृपा का गुणगान किया जाता है।
छठ पूजा का आध्यात्मिक संदेश
छठ महापर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्मसंयम, पर्यावरण संतुलन और पारिवारिक एकता का संदेश देता है। इस पर्व में कोई मूर्तिपूजा नहीं होती, बल्कि प्रत्यक्ष देवता सूर्य की आराधना की जाती है। सूर्य की ऊर्जा जीवन का आधार है, यही छठ पूजा का सबसे बड़ा संदेश है।
खरना और छठ की शुभकामनाएं
“मीठी खीर का महाप्रसाद,
छठी मैया का हो आशीर्वाद,
सुख-समृद्धि से भर जाए जीवन,
यही है हमारी शुभकामनाएं,
खरना की हार्दिक शुभकामनाएं।”
छठ पूजा भारतीय संस्कृति की उस परंपरा का प्रतीक है जो शुद्धता, संयम, प्रकृति और सूर्य उपासना को जीवन का अभिन्न हिस्सा मानती है। यह पर्व मन, शरीर और आत्मा को एक सूत्र में बांधने वाला महान त्योहार है, जो जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करता है।
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