लगातार पेड़ों की कटाई से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है, ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की वजह से पारा आसमान छू रहा है। इतनी भयंकर गर्मी के बीच हम मौसम को दोष देते रहते है लेकिन ये कभी नहीं सोचते कि चलो आज एक पेड़ लगाएं। बल्कि विकास के नाम पर हम लगातार पेड़ों की कटाई कर रहे है। पर्यावरण (Environment Conservation) को बचाने के लिए बीएमसी लगातार कोशिश करती रहती है। बीएमसी ने एक ऐसी पहल की है जिसकी सराहना हर कोई मुंबईकर कर रहा है। दरअसल अब तक मुंबई के श्मशानों में अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी का उपयोग होता रहा है। एक मृत शरीर के दाह संस्कार में 300 किलो लकड़ी लगती है। इसके लिए औसतन दो पेड़ों को काटने की जरूरत पड़ती है। नतीजतन, पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए बीएमसी ने मुंबई के 14 पारंपरिक श्मशान भूमि में लकड़ी की जगह ब्रिकेट्स बायोमास का इस्तेमाल करने का फैसला किया है।
अंतिम संस्कार के लिए हर साल 18 लाख 60 हजार किलो लकड़ी का होता है इस्तेमाल, अब ब्रिकेट्स बायोमास का होगा इस्तेमाल
मुंबई महानगरपालिका (Mumbai MCGM) की ओर से पर्यावरण संरक्षण के लिए यह कदम उठाया गया है। बढ़ते प्रदूषण की पृष्ठभूमि में BMC के स्वास्थ्य विभाग द्वारा दाह संस्कार के लिए विभिन्न विकल्प तलाशे गए। खेत के कचरे और पेड़ों के कचरे से बने ‘ब्रिकेट्स बायोमास’ का उपयोग अपेक्षाकृत अधिक पर्यावरण के अनुकूल पाया गया और अब बीएमसी के 14 पारंपरिक श्मशानों में लकड़ी के बजाय ईंट बायोमास का उपयोग करने का निर्णय लिया गया। मुंबई में विभिन्न श्मशानों में दाह संस्कार के लिए बीएमसी द्वारा नि:शुल्क सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इनमें पारंपरिक श्मशान, इलेक्ट्रिक श्मशान और पीएनजी श्मशान शामिल हैं।
मुंबई के 14 कब्रिस्तानों में हर साल करीब 6,200 शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है
‘ब्रिकेट्स बायोमास’ कृषि और पेड़ के कचरे (Agro/Tree Waste Wood) से बनाया जाता है। लगभग एक तिहाई कृषि अपशिष्ट का निपटान किया जाता है। इस कचरे से पर्यावरण के अनुकूल ब्रिकेट बनाए जाते हैं। चूंकि ब्रिकेट्स बायोमास में लकड़ी की तुलना में अधिक दहन गर्मी होती है, इसलिए प्रत्येक शव के लिए 250 किलोग्राम ब्रिकेट बायोमास पर्याप्त होता है। पहले चरण में मुंबई के 14 कब्रिस्तानों में ब्रिकेट बायोमास का इस्तेमाल किया जाएगा। मुंबई के 14 कब्रिस्तानों में हर साल करीब 6,200 शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। इसके लिए साल भर में करीब 18 लाख 60 हजार किलो लकड़ी का इस्तेमाल होता है।