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October 28, 2025

देवार्क सूर्य मंदिर: जहां सूर्य के टुकड़ों से प्रकट हुई थीं छठी मैया, आज भी गूंजती है अदिति की तपस्या

The CSR Journal Magazine
बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देवार्क सूर्य मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था और इतिहास का संगम है। कहा जाता है कि यहीं देवताओं की मां अदिति ने देवासुर संग्राम के समय कठिन तप किया था। उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति के लिए छठी मैया की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर छठी देवी ने अदिति को तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया, जो आगे चलकर आदित्य भगवान के रूप में जन्मे और उन्होंने देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई। यही कारण है कि यह स्थान न केवल छठ पर्व का केंद्र है, बल्कि छठी मैया की उत्पत्ति भूमि भी माना जाता है।

देवार्क सूर्य मंदिर: सूर्य आराधना की जीवित परंपरा

यह मंदिर सूर्य देव के वैदिक नाम ‘अर्क’ को समर्पित है। ‘अर्क’ का अर्थ होता है, सूर्य का तेज या रस, जो जीवन का मूल स्रोत है। वेदों में भी कहा गया है, “ओम अर्काय नमः”, यानी “मैं अर्क देव को नमस्कार करता हूं।” इसी वैदिक संदर्भ से देवार्क नाम की उत्पत्ति मानी जाती है। छठ पूजा के दौरान यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है और सूर्य उपासना की यह वैदिक परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी सहस्राब्दियों पहले थी।

शिव के त्रिशूल से जुड़ी अद्भुत पौराणिक कथा

देवार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी एक पुरानी पुराण-कथा कहती है कि जब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से सूर्य देव को भेद दिया, तो सूर्य के तीन टुकड़े पृथ्वी पर गिरे देवार्क (बिहार) में,लोलार्क (काशी) में और कोणार्क (ओडिशा) में।इन तीनों स्थानों पर बाद में सूर्य उपासना के प्रमुख केंद्र बने।देवार्क वही जगह मानी जाती है, जहां देवमाता अदिति ने छठी देवी (छठी मैया) की पूजा की थी।इसलिए लोककथाओं में कहा जाता है जहां सूर्य के टुकड़े गिरे, वहीं सूर्य की ऊर्जा और छठी देवी का तेज प्रकट हुआ।अर्थात छठी मैया, सूर्य की दिव्य शक्ति का ही रूप हैं, जो अदिति की तपस्या से मूर्त रूप में प्रकट हुईं।

अनूठा वास्तु शिल्प: पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर

देवार्क सूर्य मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख नहीं, बल्कि पश्चिमाभिमुख है। पत्थरों पर बारीक नक्काशी और उत्कृष्ट स्थापत्य इसे अद्वितीय बनाते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर 6वीं से 8वीं शताब्दी के बीच निर्मित हुआ, जबकि कई पौराणिक मान्यताएं इसे त्रेता या द्वापर युग से जोड़ती हैं। वास्तु शिल्प की दृष्टि से यह मंदिर बिहार के प्राचीनतम और सबसे रहस्यमय धार्मिक स्थलों में गिना जाता है।

छठ पर्व का आध्यात्मिक केंद्र

छठ महापर्व के दौरान देवार्क सूर्य मंदिर में उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। यहां की घाटी में सूर्योदय का दृश्य देखने हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। यह स्थान बिहार की सूर्य पूजा परंपरा का जीवंत प्रतीक है। कहा जाता है, जब भी छठ का पर्व आता है, तो देवार्क का हर पत्थर, हर किरण अदिति के तप और छठी मैया की शक्ति की गवाही देता है।

आस्था, इतिहास और विज्ञान का संगम

देवार्क सूर्य मंदिर केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि भारत की सूर्य उपासना परंपरा का जीता-जागता प्रमाण है। यहां की हर कथा, हर पूजा और हर अर्घ्य हमें याद दिलाता है कि सूर्य केवल एक देवता नहीं, बल्कि जीवन का स्रोत हैं , और अदिति की तपस्थली देवार्क, उसी जीवन ऊर्जा की अनंत ज्योति का प्रतीक है।
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