Bhojasar Village आज भी राजस्थान में education, equality और reform की एक जीवंत मिसाल बना हुआ है जहां परंपरा और प्रगति का सुंदर संगम देखने को मिलता है।
सामाजिक सुधार की मिसाल: 1952 में खत्म हुई मृत्यु भोज की परंपरा
झुंझुनूं जिले से करीब 21 किलोमीटर दूर स्थित Bhojasar Village ने समाज में सुधार की ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी प्रेरणा देती है। सन् 1952 में गांव की सामूहिक बैठक में यह ऐतिहासिक निर्णय लिया गया कि अब से मृत्यु भोज (Death Feast) जैसी कुप्रथा नहीं होगी।
आर्य समाज के कार्यकर्ताओं के प्रभाव और स्थानीय लोगों की जागरूकता से यह बदलाव संभव हुआ। हरदाराम, चुनाराम, थानाराम, सूरजाराम, चिमनाराम, कालूराम, लादुराम और हीराराम जैसे ग्रामीणों ने social evils के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था।
तब से लेकर आज तक 73 वर्षों से भोजासर में किसी भी परिवार ने मृत्यु भोज का आयोजन नहीं किया। यह राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक social reform success story बन गया है।
शिक्षा और स्वतंत्रता की रोशनी: 1925 में खुला था पहला School
Bhojasar Village में शिक्षा की अलख आजादी से पहले ही जल उठी थी। सन् 1925 में यहां की ऐतिहासिक धरोहर Samadh Bhavan में पहला Primary School शुरू हुआ। उस दौर में शिक्षक का वेतन — मात्र एक रुपया प्रति माह — गांव के लोग चंदा करके देते थे।
स्वतंत्रता के बाद यह विद्यालय सरकार के अधीन आ गया, और आज भी यहां शिक्षा की परंपरा जारी है। गांव के लोग बताते हैं कि शिक्षा और जागरूकता ने ही उन्हें सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ खड़ा होने का साहस दिया।
इसी शिक्षा और सुधार की भावना से भोजासर ने एक ऐसी परंपरा बनाई, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण बन गई।
शहीद करणीराम और पहला चुनाव: रस्सी डालकर चुना गया Sarpanch
भोजासर के वीर पुत्र शहीद करणीराम (1914–1952) इस गांव की शान हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने law practice के साथ freedom movement और social reforms में सक्रिय भूमिका निभाई। वे झुंझुनूं जिला कांग्रेस कमेटी के पहले अध्यक्ष बने और सामंतवाद के खिलाफ खुलकर लड़े।
13 मई 1952 को चंवरा गांव में उन्हें और रामदेव को गोली मार दी गई। उनकी statues आज झुंझुनूं कलेक्ट्रेट, विद्यार्थी भवन, चंवरा और भोजासर में लोगों को प्रेरित करती हैं।
इसी वर्ष, 1952 में ही भोजासर का पहला Panchayat Election हुआ। उस समय न तो ballot paper था और न ही ballot box।
चुनाव अधिकारी ने गांव के बीच में रस्सी डालकर वोटिंग करवाई — रस्सी के एक ओर Rekhsingh Dulad और दूसरी ओर Thanaram के समर्थक खड़े हुए।
जिस ओर ज्यादा हाथ उठे, वही विजेता घोषित हुआ। इस प्रकार Rekhsingh Dulad गांव के पहले Sarpanch बने।
गांव का गौरवशाली इतिहास
भोजासर का इतिहास लगभग 450 वर्षों से भी पुराना है। कहा जाता है कि भोजा जाट यहां आकर बसे, और उन्हीं के नाम पर गांव का नाम भोजासर पड़ा।
आज यहां करीब 900 घरों में लगभग 4700 की आबादी निवास करती है। गांव में Jat community प्रमुख है, जिसमें मील, महला, गढ़वाल, शेशमा, बलौदा, पुनियां और झाझड़िया गोत्र प्रमुख हैं।
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