कभी सिल्क सिटी के नाम से मशहूर रहा भागलपुर अब लिनन के उत्पादन में एक नया अध्याय लिख रहा है। पिछले 8-10 वर्षों में यहाँ लिनन फैब्रिक का चलन तेजी से बढ़ा है, और इसका कारोबार सालाना 100 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। सिल्क उद्योग में आई गिरावट के बाद यह बदलाव बुनकरों के लिए उम्मीद की एक नई किरण लेकर आया है।
चुनाव का मौसम, बुनकरों के लिए खुशहाली का पैगाम
जब भी कोई पर्व-त्योहार या चुनाव का समय आता है, भागलपुर के बुनकरों की स्थिति में सुधार होता है। बिहार में विधान सभा चुनाव नजदीक आते ही, बुनकरों की झोली में खूब काम आ रहा है। नेता और उनके समर्थक भागलपुर में बने गमछे और लिनन के कपड़े पहनकर घूम रहे हैं, जिससे बुनकरों को अच्छा खासा ऑर्डर मिल रहा है। कुर्ता-पायजामा, धोती और गमछे की मांग एकाएक बढ़ गई है, जिससे नाथनगर के दुकानदारों के चेहरे पर भी रौनक लौट आई है।
राजनीतिक गलियारों की पहली पसंद: भागलपुरी लिनन
राजनीतिक दलों के बीच भागलपुरी कपड़े हमेशा से पसंद किए जाते रहे हैं। गर्मी के मौसम में लिनन के कपड़े बेहद आरामदायक होते हैं, यही वजह है कि इनकी डिमांड बढ़ गई है। भले ही रेशम का काम पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, लेकिन बाजार में फिलहाल लिनन कपड़ों की धूम है।
खासियत: भागलपुरी गमछे की बढ़ती मांग
चुनाव के दौरान भागलपुर के गमछे की बहुत मांग होती है। ये गमछे अपने बड़े साइज, अच्छी बनावट और मुलायम कपड़े के लिए जाने जाते हैं। ये सस्ते भी होते हैं और इनकी एक खासियत यह है कि इनके मुलायम कपड़े से शरीर पर किसी तरह की एलर्जी नहीं होती। यही कारण है कि लोग इन गमछों को खूब पसंद करते हैं।
कीमत पर एक नज़र
* सिल्क बंडी: ₹1000 से ₹1200
* खादी बंडी: ₹400 से ₹800
* पायजामा कपड़े (प्रति मीटर): ₹80
* कुर्ता कपड़े (प्रति मीटर): ₹150 से ₹250
* कपड़ा टोपी और सिल्क टोपी: ₹50 से ₹200
* दो मीटर का गमछा: ₹100
* चार से पाँच मीटर का गमछा: ₹150 से ₹200