विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले में इस साल एक अविस्मरणीय दृश्य देखने को मिला। रूस और यूक्रेन, दो ऐसे देश जो युद्ध में उलझे हैं, उनके श्रद्धालु गयाजी की पवित्र धरती पर एक साथ अपने पूर्वजों की आत्मशांति के लिए पिंडदान करते दिखे। यह अद्भुत नजारा युद्ध की कड़वाहट के बीच शांति और आस्था का एक मजबूत संदेश देता है।
फल्गु नदी के तट पर शांति का आह्वान
फल्गु नदी के किनारे स्थित देवघाट पर रूस, यूक्रेन, अमेरिका और स्पेन सहित विभिन्न देशों से आए 17 विदेशी श्रद्धालुओं ने भारतीय वेशभूषा में पारंपरिक तरीके से अनुष्ठान किया। गयापाल पंडा मनोज लाल टइयां के मार्गदर्शन में हुए इस धार्मिक कर्मकांड के दौरान सभी ने मिलकर अपने पितरों की आत्मा के लिए मंत्रोच्चार किया। यह दृश्य दिखाता है कि आध्यात्मिकता और श्रद्धा की भावना किसी भी भौगोलिक या राजनीतिक सीमा से परे है।

एक रूसी श्रद्धालु का भावुक अनुभव
रूस की एक श्रद्धालु, सियाना ने इस अनुभव को ‘अविस्मरणीय’ बताया और कहा कि गयाजी की आध्यात्मिक भूमि और यहाँ की संस्कृति ने उन्हें बहुत प्रभावित किया है। उन्होंने यह भी कहा कि यह घटना पितरों के प्रति प्रेम, श्रद्धा और आस्था की शक्ति को दर्शाती है, जो किसी भी परिस्थिति से बड़ी है।

आस्था की शक्ति: लाखों का संगम
यह अनोखा संगम केवल एक दृश्य नहीं था, बल्कि यह साबित करता है कि आस्था और संस्कृति की ताकत सीमाओं से ऊपर होती है। आंकड़ों के अनुसार, अब तक लगभग 25 लाख 19 हजार श्रद्धालु गयाजी में पिंडदान कर चुके हैं। देवघाट, अक्षयवट, रामशिला और प्रेतशिला जैसे प्रमुख स्थानों पर हजारों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु लगातार अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे हैं। यह घटना गयाजी की इस मोक्ष नगरी की सदियों पुरानी परंपरा को और भी जीवंत कर गई है।


