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October 23, 2025

कामाख्या मंदिर का झरना 3 दिन तक क्यों हो जाता है लाल? जानें इसके पीछे का रहस्य

The CSR Journal Magazine
असम के गुवाहाटी शहर में नीलाचल पहाड़ी की चोटी पर स्थित कामाख्या देवी मंदिर न केवल भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, बल्कि शक्ति पूजा का प्रमुख केंद्र भी माना जाता है। यहां देवी कामाख्या की पूजा किसी मूर्ति के बजाय एक प्राकृतिक शिला के माध्यम से होती है, जो स्त्रीत्व और सृजन शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

देवी कामाख्या का रहस्यमयी इतिहास

कहा जाता है कि देवी सती के शरीर के विभिन्न अंगों के गिरने से भारत में 51 शक्तिपीठ स्थापित हुए। कामाख्या मंदिर वह स्थल है जहां सती की योनि गिरी थी, इसलिए इसे ‘योनि पीठ’ भी कहा जाता है। मंदिर की वर्तमान संरचना 16वीं शताब्दी में कोच राजा नरणारायण के शासनकाल में वास्तुकार मेघमुकदम द्वारा पुनर्निर्मित की गई। इस मंदिर में देवी की पूजा प्राकृतिक शिला के माध्यम से होती है और इसे तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है।

रहस्यमयी लाल झरना प्रमुख उत्सव

गर्भगृह के भीतर एक प्राकृतिक झरना लगातार बहता है। अंबुबाची मेले के दौरान यह झरना तीन दिनों के लिए लाल हो जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इसे लौह तत्व या मरकरी सल्फाइड से जोड़ा जाता है, लेकिन तंत्र साधक इसे दिव्य ऊर्जा का स्रोत मानते हैं।अंबुबाची मेले के दौरान इस झरने के पास विशेष अनुष्ठान संपन्न होते हैं। अंबुबाची मेला – यह वार्षिक मेला देवी कामाख्या के मासिक धर्म चक्र का प्रतीक है। तीन दिन तक मंदिर बंद रहता है और भक्त देवी की रजस्वला अवस्था का सम्मान करते हैं। 2025 में यह मेला 21 जून से शुरू हुआ।नवरात्रि के दौरान मंदिर में मनसा पूजा और दुर्गा पूजा बड़े उत्साह से मनाई जाती है। इस दौरान हजारों श्रद्धालु देवी की पूजा-अर्चना करते हैं और परिसर में धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं।

अद्वितीय वास्तुकला और संरचना

कामाख्या मंदिर की वास्तुकला नीलाचल शैली में है, जिसमें बंगाल की चर्चला शैली की छत और अष्टकोणीय गुंबद शामिल है। मुख्य गर्भगृह में देवी की पूजा प्राकृतिक शिला के माध्यम से होती है। मंदिर परिसर में दस महाविद्याओं के अलग-अलग मंदिर हैं, जिनमें त्रिपुर सुंदरी, मातंगी और कमला मुख्य मंदिर के भीतर स्थित हैं, जबकि अन्य सात मंदिर परिसर में अलग-अलग स्थानों पर हैं। यह महाविद्याओं का समूह अपने प्रकार में दुर्लभ और अनोखा माना जाता है।

पूजा पद्धति और तंत्र साधना

कामाख्या मंदिर तंत्र साधना का केंद्र है। देवी की पूजा वामाचार और दक्षिणाचार दोनों पद्धतियों से की जाती है। यहां बलिदान की परंपरा भी जारी है, जिसमें जानवरों और पक्षियों का चढ़ावा शामिल हो सकता है। मंदिर के गर्भगृह में स्थित योनि के आकार की शिला ही देवी कामाख्या के रूप में पूजी जाती है।

इतिहास और ऐतिहासिक महत्व

कामाख्या मंदिर संभवत खासी और गारो लोगों के लिए प्राचीन बलिदान स्थल था। कालिका पुराण और योगिनी तंत्र में इसका उल्लेख मिलता है। मध्यकाल में कोच राजा नरणारायण ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। बाद में अहोम साम्राज्य ने भी मंदिर का संरक्षण किया। मंदिर में कालांता, पंचरत्न और नटमंदिर जैसी संरचनाएँ शामिल हैं, जिनकी दीवारों पर गणेश और अन्य देवताओं की नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं।

मंदिर तक कैसे पहुंचें

कामाख्या मंदिर गुवाहाटी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन या गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से टैक्सी या ऑटो द्वारा पहुंचा जा सकता है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में मंदिर तक रोपवे परियोजनाओं की घोषणा की है, जिससे आने वाले समय में यात्रा और भी सुविधाजनक होगी।
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