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November 6, 2025

500 साल से हवा में तैर रहा पत्थर! आखिर क्या है Veerabhadra Temple का वो रहस्य जो गुरुत्वाकर्षण को मात देता है?

The CSR Journal Magazine
आंध्र प्रदेश के लेपाक्षी में स्थित वीरभद्र मंदिर न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि यह भारत की अद्भुत स्थापत्य कला का एक जीवंत प्रमाण भी है। इस 16वीं सदी के विजयनगर साम्राज्य के मंदिर में लगभग 70 स्तंभ हैं, लेकिन एक ऐसा भी है जो ज़मीन को छूता ही नहीं, इसे ही कहा जाता है “लटकता स्तंभ” (Hanging Pillar)।मंदिर परिसर में एक विशाल “नागलिंग” बनी है यानी एक ही पत्थर से तराशी गई शिवलिंग, जिसके ऊपर सात फन फैलाए नाग (शेषनाग) बने हैं।माना जाता है कि यह भारत की सबसे बड़ी एकाश्म नागलिंग मूर्ति है।

रहस्यमयी स्तंभ जो गुरुत्वाकर्षण को चुनौती देता है

कहा जाता है कि यह स्तंभ दिव्य शक्ति का प्रतीक है कुछ मानते हैं कि इसे इस तरह बनाया गया ताकि यह दर्शाए कि “भगवान हर चीज़ को संभाले हुए हैं, भले वह हवा में ही क्यों न हो।” एक और लोककथा के अनुसार, विजयनगर काल में काम कर रहे शिल्पकारों ने इसे अपनी कला का नमूना बनाने के लिए जानबूझकर “लटकता” बनाया था ताकि यह साबित किया जा सके कि इंसान पत्थर को भी “हवा में टिकाने” की कला जानता था।
मंदिर के विशाल सभा मंडप में यह स्तंभ पहली नजर में साधारण लगता है, पर जब कोई व्यक्ति इसके नीचे एक कपड़ा या कागज की पट्टी सरकाता है और वह दूसरी ओर से निकल जाती है, तो सब दंग रह जाते हैं। यह स्तंभ मंदिर की छत को थामे हुए है, फिर भी इसका आधार ज़मीन से अलग है। कहा जाता है कि 69 स्तंभों पर पूरा मंदिर टिका है, जबकि यह एक स्तंभ मात्र दिखने को “हवा में झूलता” प्रतीत होता है।

स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना

वीरभद्र मंदिर विजयनगर शैली में निर्मित है और इसमें हर जगह पत्थरों पर अद्भुत नक्काशी की गई है। मंदिर के दीवारों और छतों पर बने भित्तिचित्र रामायण, महाभारत और पुराणों की कथाओं को जीवंत रूप देते हैं। यह मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर बना है जिसे कूर्मशैलम कहा जाता है, क्योंकि इसका आकार कछुए जैसा है।
मंदिर का निर्माण 1530 ईस्वी के आसपास विजयनगर साम्राज्य के शासक अच्युतदेव राय के शासनकाल में हुआ था। इसे वीरूपन्ना नायक और वीरन्ना नामक दो भाइयों ने बनवाया था, जो साम्राज्य के गर्वनर थे।

धार्मिक और पौराणिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यही वह स्थान है जहां जटायु ने रावण से युद्ध करते हुए मां सीता को बचाने की कोशिश की थी। जब वह घायल होकर यहां गिरा, तो भगवान राम ने कहा “ले पाक्षी” यानी “उठो, पक्षी”  इसी से इस स्थान का नाम लेपाक्षी पड़ा।
मंदिर में भगवान वीरभद्र (भगवान शिव का उग्र रूप) की विशाल मूर्ति प्रतिष्ठित है। इसके अलावा गणेश, विष्णु, पार्वती और भद्रकाली की मूर्तियां भी यहां विद्यमान हैं। मंदिर के बाहर स्थित 30 फीट लंबा और 20 फीट ऊंचा नंदी बैल का एकलाश्मक शिल्प (single stone carving) दुनिया के सबसे बड़े नंदी मूर्तियों में गिना जाता है।

रहस्य जो सुलझा नहीं

कहा जाता है कि ब्रिटिश काल में एक इंजीनियर ने इस लटकते स्तंभ का रहस्य जानने की कोशिश की और उसे हिलाने का प्रयास किया। लेकिन नतीजा यह हुआ कि स्तंभ थोड़ा-सा अपनी जगह से खिसक गया, पर उसका रहस्य आज तक नहीं सुलझ पाया। यह अभी भी एक ओर से ज़मीन से हल्का-सा जुड़ा है और दूसरी ओर से हवा में झूलता है।कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह चमत्कार किसी भूकंपीय हलचल या पत्थर काटने की विशेष तकनीक के कारण हुआ होगा। वहीं स्थानीय लोग इसे दिव्य शक्ति और प्राचीन अभियंत्रण (ancient engineering) का प्रमाण मानते हैं।

आज का आकर्षण

हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक लेपाक्षी आते हैं, सिर्फ इस रहस्यमयी स्तंभ को देखने के लिए। गाइड्स अक्सर लोगों को कपड़ा या कागज लेकर स्तंभ के नीचे से गुजारने को कहते हैं और जब वह आर-पार निकल जाता है, तो भीड़ हैरान रह जाती है।लेपाक्षी का यह लटकता स्तंभ न केवल भारतीय स्थापत्य कौशल का चमत्कार है, बल्कि यह इस बात का जीवंत उदाहरण भी है कि सैकड़ों साल पहले हमारे शिल्पकारों की समझ कितनी उन्नत थी। आज भी यह स्तंभ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए एक पहेली बना हुआ है  एक ऐसा रहस्य जो समय के साथ और गहराता जा रहा है।
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