आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब क्राइम इन्वेस्टिगेशन में क्रांतिकारी बदलाव लाने को तैयार है। नई वैज्ञानिक रिसर्च ने यह साबित कर दिया है कि एक ही व्यक्ति की अलग-अलग उंगलियों के फिंगरप्रिंट्स में गहरी समानताएं होती हैं। इसी तकनीक के आधार पर राजस्थान पुलिस भी हर अपराधी के सभी फिंगरप्रिंट लेकर बड़ा डिजिटल डेटाबेस तैयार कर रही है, जिससे अपराधियों का बच पाना मुश्किल हो जाएगा।

फॉरेंसिक साइंस में ऐतिहासिक बदलाव
अब तक फॉरेंसिक साइंस में यह मान्यता थी कि इंसान की हर उंगली का फिंगरप्रिंट पूरी तरह अलग होता है। लेकिन अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी की नई रिसर्च ने इस सोच को बदल दिया है। जनवरी 2024 में ‘साइंस एडवांस’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, एक ही व्यक्ति की अलग-अलग उंगलियों के निशानों में पैटर्न, लकीरों की दिशा और घुमाव (स्वर्ल्स) में समानता पाई जाती है।
AI इन छिपी समानताओं को पहचानकर अलग-अलग अपराध स्थलों से मिले निशानों को एक ही अपराधी से जोड़ सकता है। इससे फॉरेंसिक साइंस के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हो गया है।

पहले जांच में क्या थी बड़ी समस्या
पहले अगर एक क्राइम सीन से अंगूठे का निशान और दूसरे क्राइम सीन से तर्जनी या किसी और उंगली का निशान मिलता था, तो पुलिस उन्हें एक ही व्यक्ति से जोड़ नहीं पाती थी।
जांच एजेंसियों को करोड़ों फिंगरप्रिंट रिकॉर्ड्स मैन्युअली या सीमित तकनीक से खंगालने पड़ते थे, जिसमें महीनों लग जाते थे। इस देरी का फायदा कई बार अपराधियों को मिल जाता था और वे कानून की पकड़ से बाहर निकल जाते थे।

AI कैसे बदल रहा है जांच का खेल
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर गेब गुओ और प्रोफेसर होड लिप्सन की टीम ने ‘डीप कॉन्ट्रास्टिव लर्निंग’ तकनीक पर आधारित AI मॉडल तैयार किया। इसे 60,000 से ज्यादा फिंगरप्रिंट्स पर ट्रेन किया गया।
यह AI फिंगरप्रिंट के बीच वाले हिस्से, लकीरों की दिशा और घुमाव में मौजूद समानताओं को पहचानता है और 75 से 90 प्रतिशत तक सटीकता से बता देता है कि अलग-अलग उंगलियों के निशान एक ही व्यक्ति के हैं या नहीं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक पारंपरिक मिन्यूशिया सिस्टम का विकल्प नहीं, बल्कि उसे और मजबूत बनाने वाला टूल है।

राजस्थान पुलिस की तैयारी और भविष्य की तस्वीर
राजस्थान पुलिस अब हर अपराधी की सभी उंगलियों के फिंगरप्रिंट ले रही है और उनका डिजिटल डेटाबेस तैयार कर रही है। इस डेटा को CCTNS और NAFIS जैसे राष्ट्रीय सिस्टम से जोड़ा जा रहा है।
इसका मतलब यह है कि अगर कोई अपराधी राज्य या देश छोड़कर भाग भी जाता है, तो कहीं और अपराध करने पर उसकी पहचान तुरंत हो सकेगी। भविष्य में AI आधारित टूल्स से जांच की रफ्तार कई गुना बढ़ेगी, पुराने कोल्ड केस दोबारा खुल सकेंगे और संदिग्धों की सूची बहुत छोटी रह जाएगी। हालांकि फिलहाल कोर्ट में इसे सीधे सबूत के तौर पर नहीं, लेकिन जांच को दिशा देने वाले बेहद अहम टूल के रूप में देखा जा रहा है।
AI के इस नए इस्तेमाल से क्राइम इन्वेस्टिगेशन का तरीका पूरी तरह बदलने वाला है। राजस्थान पुलिस की पहल आने वाले समय में अपराधियों पर सख्त शिकंजा कसने में अहम भूमिका निभाएगी। तकनीक के इस दौर में अब अपराधी का बच निकलना आसान नहीं रहेगा।


