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October 20, 2025

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नेताओं की ‘अजब’ दीपावली: टिकटों का ‘पटाखा’ और जनता की ‘लाइट’

The CSR Journal Magazine
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे के गहमागहमी भरे दौर के ठीक बाद इस बार दीपावली का पर्व नेताओं के लिए थोड़ा ‘अजीब’ सा है। जहां एक ओर टिकट पाने वाले ‘भाग्यशाली’ उम्मीदवार जीत की उम्मीद में ज़ोर-शोर से प्रचार और दीपावली मिलन समारोहों की तैयारी में हैं, वहीं टिकट कटने वाले कई दिग्गज़ नेताओं के घरों में इस बार त्योहार की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई है।

टिकट बंटवारे के बाद नेताओं की दीपावली: ख़ुशी की ‘रोशनी’ या टिकट कटने का ‘अंधेरा’?

अंदरूनी ख़बरों के मुताबिक, चाहे वह सत्ताधारी NDA खेमा हो या विपक्षी महागठबंधन, टिकट वितरण में हुई गुटबाज़ी और विद्रोह ने कई वरिष्ठ नेताओं की दीपावली की मिठास कम कर दी है। सूत्रों के अनुसार, कई सीटों पर बागी उम्मीदवारों की चुनौती ने पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है। दूसरी तरफ, जनसुराज जैसे नए राजनीतिक प्रयास भी ज़मीन पर अपनी जगह बनाने के लिए पूरी ताक़त लगा रहे हैं, जिससे इस चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।

NDA, महागठबंधन, जनसुराज: क्या निभा पाएंगी ‘चुनावी वादों’ की ज़िम्मेदारी?

दीपावली, जिसका अर्थ है अंधकार पर प्रकाश की जीत, यह पर्व बिहार की राजनीति के लिए इस बार एक गहरा संदेश लाया है। विभिन्न राजनीतिक दल – चाहे वे सत्ता का दावा कर रहे हों या बदलाव का – क्या वे वास्तव में बिहार की जनता से किए गए अपने वादों की ज़िम्मेदारी निभा पाएंगी?

फैसला जनता का: ‘जीत की गारंटी’ नहीं, इस बार ‘जनता का सम्मान’ ही सबसे बड़ी दावेदारी!

इस चुनाव में सबसे बड़ा बदलाव आया है बिहार की जनता के मूड में। पारंपरिक जातिगत समीकरणों से ऊपर उठकर, इस बार मतदाता, विशेषकर युवा और महिलाएँ, विकास, रोज़गार और सुशासन के मुद्दों पर बेहद मुखर हैं।

टिकट के ‘पटाखों’ से सहमी नेताओं की दीपावली, जनता के ‘फैसले’ का इंतज़ार

इस बार जनता का कहना स्पष्ट है: “अब हमारी है बारी।” बिहार की जागरूक जनता ने तय कर लिया है कि वे किसी भी पार्टी या नेता की ‘दावेदारी’ को सिर्फ़ उनके वादों के आधार पर स्वीकार नहीं करेंगे। ‘वोट की चोट’ इस बार इतनी ताक़तवर है कि वह किसी भी पार्टी की वर्षों पुरानी जीत की दावेदारी को पल भर में धूमिल कर सकती है।

बिहार चुनाव का ‘दीपोत्सव’: इस बार ‘वोट की चोट’ से जनता सभी पार्टियों पर भारी!

इस ‘चुनावी दीपोत्सव’ में, चाहे कोई भी नेता हो या पार्टी, इस बार जीत की नहीं है दावेदारी, बल्कि जनता का विश्वास और सम्मान ही सबसे बड़ा पुरस्कार है। मतदान के दिन, जनता अपने ‘वोट’ रूपी दीपक से तय करेगी कि असली ‘रोशनी’ किस राजनीतिक खेमे में आएगी। यह दीपावली नेताओं के लिए ख़ुशी कम और जनता के फैसले का इंतज़ार ज़्यादा है।

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