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September 29, 2025

10 घंटे बिना हिले देवी रूप में: जब मूर्ति और इंसान का भेद हो जाए मुश्किल

The CSR Journal Magazine
बिहार की राजधानी पटना में नवरात्र के दौरान कई पूजा पंडालों में एक अनोखा और विस्मयकारी दृश्य देखने को मिलता है। यहां श्रद्धालु देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के दर्शन करते हैं, लेकिन ये मूर्तियाँ नहीं, बल्कि साक्षात ‘चैतन्य देवियाँ’ होती हैं। ये 18 से 25 वर्ष की लड़कियाँ हैं, जो घंटों तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों (जैसे- दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती) के साथ-साथ गणेश और कार्तिकेय का रूप भी धारण करती हैं।
इन लड़कियों को पहचानना मुश्किल होता है क्योंकि इन्हें मूर्ति जैसा दिखाने के लिए इनके शरीर पर विशेष रूप से मुल्तानी मिट्टी और मृदा शंख मिट्टी का लेप लगाया जाता है। घंटों के भारी मेकअप के बाद, ये 10 घंटे तक एक ही आसन में बैठी रहती हैं। इनकी एकाग्रता इतनी गहरी होती है कि इनके शरीर में कोई हलचल या थकान नहीं दिखती, जिससे भक्त भ्रमित हो जाते हैं कि वे किसी मूर्ति के दर्शन कर रहे हैं या किसी इंसान के। चैतन्य देवियाँ आमतौर पर सप्तमी, अष्टमी और नवमी को शाम 6 बजे से सुबह 4 बजे तक दर्शन देती हैं।

राजयोग की शक्ति: कैसे भाग जाती है 10 घंटे की ‘नींद’

इतने लंबे समय तक बिना हिले बैठने के पीछे इनकी गहन तपस्या और एकाग्रता की शक्ति है। ब्रह्मकुमारी संस्थान से जुड़ी ये लड़कियाँ नियमित रूप से राजयोग का अभ्यास करती हैं। इस आध्यात्मिक प्रशिक्षण से इन्हें वह आंतरिक शक्ति मिलती है, जिसकी बदौलत 10 घंटे तक जागना और एक ही अवस्था में रहना इनके लिए संभव हो पाता है।
पिछले 10 सालों से देवी बन रही गुड़िया बताती हैं कि इस रूप में बैठने पर एकाग्रता की शक्ति अपने आप आ जाती है, जिससे नींद कहां चली जाती है, पता ही नहीं चलता। वहीं, ईशा (देवी काली) कहती हैं कि पंडाल में बैठते ही एक पॉजिटिव वाइब और अचानक पावर महसूस होती है। ब्रह्मकुमारी संस्थान की निदेशिका संगीता के अनुसार, यह झाँकी इस ईश्वरीय संदेश को देती है कि हर आत्मा के अंदर दिव्य शक्तियां मौजूद हैं, जिन्हें राजयोग से जागृत किया जा सकता है।

सात्विकता का कठोर प्रण: ‘दिखावा वाला जीवन लगता है तुच्छ’

चैतन्य देवी बनने के लिए केवल योग ही नहीं, बल्कि पवित्रता और सात्विक जीवन का कठोर संकल्प लेना होता है। इन लड़कियों में मधुरता, नम्रता, और सहनशीलता जैसे दिव्य गुणों के साथ-साथ सात्विकता सबसे महत्वपूर्ण शर्त है। ये आजीवन सात्विक खाना (बिना लहसुन-प्याज के) खाने का प्रण लेती हैं।
गुड़िया और खुशी (जो पिछले 8 साल से कार्तिकेय बन रही हैं) दोनों ने सात्विकता का प्रण लिया है। गुड़िया ने ग्रेजुएशन के बाद ब्रह्मकुमारी संस्थान में सरेंडर कर दिया है और कहती हैं कि उन्हें दिखावा वाला जीवन तुच्छ लगता है। खुशी, जो बैंकिंग की तैयारी कर रही प्रियंका की तरह रात भर पढ़ाई करती हैं और सुबह 5 बजे मेडिटेशन, वह कहती हैं कि बचपन से भगवान से दोस्ती करने की सीख के कारण उनके लिए यह सादा और नियंत्रित जीवन जीना बहुत आसान है। दर्शन के दौरान ये देवियाँ केवल लिक्विड फूड (जैसे नारियल पानी या जूस) ही लेती हैं ताकि नींद न आए।

44 साल पुरानी परंपरा: पटना के 10 से ज़्यादा स्थानों पर दर्शन

चैतन्य देवी के रूप में दर्शन देने की इस अनूठी परंपरा की शुरुआत पटना में आज से लगभग 44 साल पहले 1980 में हुई थी। सबसे पहले इन्हें कदमकुआं के पास बैठाया गया था। धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई। वर्तमान में, पटना के कई स्थानों जैसे शेखपुरा, राजा बाजार, डाकबंगला, दानापुर और कंकड़बाग समेत 10 से ज़्यादा जगहों पर चैतन्य देवियों की झाँकियाँ लगाई जाती हैं। यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि नारी शक्ति की एकाग्रता और पवित्रता को भी दर्शाती है।

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