Home CATEGORIES Women & Child Welfare बलात्कार नारी का या इंसानियत का?

बलात्कार नारी का या इंसानियत का?

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एक बार फिर से सारा देश उबल रहा है, कैंडल मार्च, सोशल मीडिया पर अत्याचार के खिलाफ खड़े होने की अपील, लोगों के ट्वीट्स और राजनीतिक पार्टियों के आरोप प्रत्यारोप, फिर वही सब, फिर फिर…लेकिन क्यों?, अब तक तो हमारे समाज को इन बातों का आदी हो जाना चाहिए था। क्या निर्भया कांड के बाद कुछ बदला, क्या उसके बाद महिलाओं पर अत्याचार और शारीरिक शोषण के किस्से रूके? नहीं। यह हैवानियत का नंगा खेल फिर भी अबाध रूप से चल रहा है। फिर चाहे वह जम्मू कश्मीर का कठुआ कांड हो या फिर उत्तर प्रदेश का उन्नाव कांड। बर्बरता ने दोनों मामलों में अपनी चरम सीमा पार की। मानवता को शर्मसार किया। हमारी दोगली राजनीति और सियासत के गंदे खेल को तार तार कर नंगा कर दिया।

यदि हम उन्नाव रेप केस की बात करें तो इस कांड को हुए 10 महीने बीत चुके हैं, पर बीते 10 महीनों में न जनता को, न हमारी मीडिया को और ना हमारे सियासतदानों को इंसाफ की फिक्र हुई। सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक और उसके भाई ने मिलकर इस जघन्य घटना को अंजाम दिया, जब पीड़िता ने अपने साथ हुए अत्याचार की रिपोर्ट लिखानी चाही तो न केवल उसे बल्कि उसके पिता को भी प्रताड़ित किया गया, मारपीट की गई, तथाकथित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और उसके भाई अतुल ने उस पर जानलेवा हमला किया और तो और दम तोड़ते वक्त उस लाचार पिता के अंगूठे का जबरन निशान लेकर मामले का रुख मोड़ने की कोशिश की गई।

यदि कठुआ रेप कांड की ओर देखे तो घटना रोंगटे खड़े कर देने वाली है, एक 8 साल की मासूम को 7 दिनों तक कैद कर 8 लोग लगातार उसका बलात्कार करते रहे, इन 8 लोगों में एक मंदिर का सेवक और उसका बेटा, 2 पुलिसवाले भी शामिल थे। बलात्कार के बाद इन लोगों ने उस बच्चे की निर्ममता से हत्या कर दी, आरोपियों की गिरफ्तारी हुई और मीडिया ने खूब हो हल्ला मचाया।

चाहे उन्नाव रेप कांड हो या कठुआ कांड दोनों ही मामलों में हमारी सरकार और न्याय व्यवस्था का जमकर मखौल उड़ाया गया। कठुआ कांड में आरोपियों के पक्ष में कुछ वकीलों ने तिरंगा लेकर मार्च निकाला, हमारे देश में तिरंगे का इतना भारी अपमान शायद ही कभी हुआ हो, उन्नाव कांड में आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर की गिरफ्तारी में सरकार को महीने लग गए, वह भी पीड़िता के इकबालिया बयान के बावजूद। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और माननीय प्रधानमंत्री जी ने चुनाव के वक्त नारा दिया था “बहुत हुआ नारी पर अत्याचार, अबकी बार मोदी सरकार” लेकिन चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार शायद अपने सारे वादे भूल गई। बीजेपी के विधायक ही अपराध कार्यों में लिप्त नजर आये, योगी जी के मुख्यमंत्री चुनकर आने के बाद एक उम्मीद जगी कि शुरुआती दौर में जिस तरह उन्होंने प्रदेश से अपराध और भ्रष्टाचार को खत्म करने की मुहिम चलाई, शायद सरकार अपने चुनावी नारों पर खरी उतरे, लेकिन उन्नाव कांड में उनकी चुप्पी ने सारे सपनों पर पानी फेर दिया।

हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा जोरों शोरों पर बुलंद किया। अपने कैबिनेट में महिलाओं को जगह दी। सीएसआर को जगह दी। सीएसआर को सभी कॉर्पोरेट के लिए जरूरी बताकर समाज के कमजोर तबके की मदद करने के लिए प्रेरित किया। लेकिन अपनी इन योजनाओं पर उन्होंने खुद पानी फेर दिया। लगा कर भूल जाने से पौधा भी मुरझा जाता है, सिर्फ योजनाएं बनाने से काम नहीं चलता उस पर अमल करना पड़ता है, उसके नतीजों की खबर रखनी पड़ती है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभारने में इतने मशगूल हो गए कि देश की जर्जर हो रही न्याय व्यवस्था का उन्हें भान ही नही रहा, जनता ने एक ऐसा प्रतिनिधि अपने रक्षक के तौर पर चुना, जिसे बेटियों के तार तार और छलनी कपड़े दिखाई ही नहीं देते, दिखाई देती है सिर्फ अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश से बाहर दोस्ती और संबंध बनाने में इतने व्यस्त हैं कि मासूम चीखें उनके कानों तक नहीं पहुंचती।

सीएसआर के जरिए 2 फीसदी, 5 फीसदी या 10 फीसदी फंड, समाज को देने की बजाय यदि 100 फीसदी महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी की बात करते तो कुछ और बात होती। देश के बड़े कॉरपोरेट्स के आयोजनों में प्रोटोकॉल तोड़कर पहुंचना, फिल्मी सितारों के शादी विवाह में शरीक होना, मिस यूनिवर्स को बधाई देना, इन सभी में हमारे प्रधानमंत्री जी कभी लेट नहीं हुए, फिर इस जघन्य कांड पर उनकी चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। आज देश की जनता न्याय के लिए उनकी तरफ देख रही है, लेकिन ऐसे नाजुक वक्त पर उनकी चुप्पी असहनीय है। रेप जैसे जघन्य अपराधों पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकना घटिया लोकतंत्र का उदाहरण है। ऐसे समय पर जब जनता मोदी जी से जवाब चाहती है, उनका अपने साथी मंत्रियों के साथ कांग्रेस के खिलाफ उपवास पर बैठना पीड़ितों के साथ एक भद्दा मजाक है। जनता बेवकूफ नहीं है। सब जानती है। निर्भया के लिए न्याय की मांग करने के लिए स्मृति जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन जी को मौन रहने पर चूड़ियां भेजी थी, क्या आज स्मृति जी वही चूड़ियां मोदी जी को भेजेंगी। जनता जवाब चाहती है। बहुत मन की बात कही, आज पूरा देश प्रधानमंत्री की मन की बात सुनना चाहता है, नन्ही बच्चियों के नंगे शरीर और चिथड़े मन पर राजनीतिक रोटियां सेंकना बंद हो। जाति और धर्म के नाम पर औरतों और मासूम बच्चियों की इज्जत का मजाक ना बने। हर पीड़ित अपने रक्षक की ओर लाचार और उम्मीद की नजर से देख रहा है, लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा देने वाले क्या यह समझते हैं कि जब बचेंगी बेटियां तभी तो पढ़ेंगी। मौन रहकर यह सियासतदान अपनी सत्ता नहीं बचा सकते। मासूमों की चीख पुकार उन्हें चैन की नींद नहीं सोने देगी। न्याय को लड़ते हाथ किस तरह ईवीएम के बटन दबाएंगे ?

क्या इन नेताओं को अपनी बच्चियों में तड़प कर दम तोड़ती और बच्चियों के चेहरे नहीं दिखाई देते हैं। इंसानियत शर्मसार हुई है. बलात्कार पीड़ित बच्चियों की रूहों के टुकड़े हुए है. दरअसल बलात्कार उन बच्चियों का नहीं हुआ, बलात्कार हुआ है हमारी कानून व्यवस्था का। जिस्म नंगे उनके नहीं हुए हैं, नंगी हुई है यह सरकार। और इस बार पीड़ित भी वही है और बलात्कारी भी वही। माफ करना निर्भया, माफ करना आसीफा, हम तुम्हें न एक सुरक्षित जीवन दे पाए ना तुम्हारी रूह को इंसाफ, शायद तुम्हें गर्भ में ही मार देते तो अच्छा होता।