शौच मुक्त महाराष्ट्र की सच्चाई।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस द्वारा यह दावा किया है कि महाराष्ट्र को अब खुले में शौच से मुक्त कर दिया गया है। इसके पहले बीएमसी ने भी मुंबई को खुले शौच से मुक्त किया था लेकिन आज भी मुंबई में लोगों को खुले में शौच करते देखा जा सकता है। मुंबई में बढी आबादी और बीएमसी के खोखले दावों के बीच खुले शौच से मुक्ति मुंबई वासियों का सपना सपना ही रह गया है। अब फड़णवीस सरकार का यह नया दावा भी बीएमसी की राह पर दौड़ रहा है। लेकिन सरकार का साहस सराहनीय है, यह जानते हुए कि पूरे राज्य को खुले शौचालय से मुक्त करना असंभव है ,फिर भी यह घोषणा करने से वह बिलकुल पीछे नही होते। क्योंकि 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 तक देश को पूरी तरह से शौच मुक्त करने का निर्धारित किया था, शायद इसी लिए फड़नवीस ने आनन फानन में आकर महाराष्ट्र को एक साल पहले ही शौच मुक्त करार दिया।
स्वच्छ महाराष्ट्र अभियान के अंतर्गत राज्य में पिछले तीन साडेतीन साल में 60 लाख 41 हजार टॉयलेट बनाकर देश में महाराष्ट्र नंबर वन होने का दावा फड़णवीस ने किया है। ऐसा नही है कि, महाराष्ट्र को शौच मुक्त करने के सरकार के इरादे में कोई खोट है। अपने इरादे पर चलने के लिए फड़णवीसने तमाम जिलों के जिलाधिकारोयोकों युध्दस्तरपर काम पर भी लगाया था। लेकिन घनी आबादी के शहर और वह भी ग्रामीण इलाको की समूची व्यवस्था को जानते हुए महाराष्ट्र को इतने जल्दी शौचमुक्त करार देना फड़णवीस की जल्दबाजी साबित हुई है। सरकारी आंकड़ों पर नजर डालने के बाद में इन दावों का खोखलापन अपने आप सामने आ जाता है। तीन साल में 60 लाख 41 हजार टॉयलेट बनाने के लिए चार करोड से अधिक खर्च किया गया। जिस के लिए केंद्र और राज्य सरकार का फंड इस्तेमाल किया गया। सरकार ने दावा किया है। की राज्य में 1 करोड 10 लाख 66 हजार 507 परिवारोनें टॉयलेट बनाये है। और हर टॉयलेट के लिए 12 हजार रुपयों का अनुदान दिया है। 2017 और 2018 में 22 लाख 51 हजार टॉयलेट पूरे किये गए थे। जिस में 351 तहसील 27 हजार 667 ग्राम पंचायत और 40 हजार 500 गावों को शौचमुक्त करने की घोषणा उस वक्त की गई थी। लेकिन सबसे बडा सवाल ये है की 2012 और 2017 के बिच में जो नये परिवार महाराष्ट्र में तैयार हुए उनका विचार इस योजना के लिए नही किया गया। मतलब 2012 तक के लोकसंख्या का विचार ही शौचमुक्त महाराष्ट्र के लिए किया गया। 2012 में हुए सर्वे के अनुसार केवल 45 फीसदी परिवारों के पास ही टॉयलेट्स थे। इस लिए सरकार ने स्वच्छ महाराष्ट्र अभियान के अंतर्गत जिन 55 फीसदी परिवारों के पास में टॉयलेट नही है उनके लिए काम करना शुरु कर दिया। अब मुख्यमंत्री फड़णवीसने कहा है की आजादी के 65 साल में राज्य में केवल 45 फीसदी टॉयलेट्स मौजूद थे लेकिन उनकी सरकार ने साढ़े तीन साल में 55 फीसदी परिवारों को टॉयलेट्स मुहैया कराने का ऐतिहासिक काम किया है। अब दूसरे चरन में सरकार इन शौच का इस्तेमाल करने समय गुड मॉर्निंग स्काड समित छोटे बच्चो के हात में सीटी देकर जनजागरण मुहिम कि शुरुआत करने वाली है। सरकार के इस अभियान के अंतर्गत ग्रामीण इलाको में अब महिलाओं की होने वाली परेशानी दुर होने वाली है।
जैसे की हमने पहले कहा की सरकार की योजना एकदम सही है लेकिन उसे अंतिम कामयाबी तक पहुंचाने के लिए और बहुत कोशिश की जरुरत है क्यो की आज भी हर जिले में 30 से 50 हजार परिवारों के पास में टॉयलेट्स नही है। और उनको पिछले 8 महीनो में एक रुपये का भी अनुदान नही दिया गया है। महाराष्ट्र सरकार की इस बात को लेकर बहुत सराहाना करनी होगी की उन्होंने सोशल रिस्पोन्सीबिलिटी फंड को बढ़ावा देकर उस का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदलने के लिए पहले सरकार कि तुलना में जादा किया। शौच मुक्त महाराष्ट्र करने के लिए सोशल रिस्पोन्सीबिलिटी फंड का इस्तेमाल अगर किया जाता तो शायद इस अभियान के परिणाम कुछ अलग हो सकते थे। आज भी is सच्चाई को बिल्कुल नकारा नहीं जा सकता कि मुंबई जैसे महानगर में रेलवे पटरी और कई शहरी इलाकों में लोग खुले में शौच करते है। और ग्रामीण इलाकों में सरकार की इस शौचमुक्त दावों के बाद भी कई जगह लोग खुले में शौच करते नजर आते है। ऐसा नहीं है कि हर चीज के लिए सरकार जिम्मेदार है। शौचमुक्त महाराष्ट्र के लिए तमाम लोगो को अपनी मानसिकता बदलने की आवश्यकता है।